लैंसडाउन उत्तराखंड का बेहद शांत और खूबसूरत टूरिस्ट प्लेस है। लैंसडाउन की सबसे खास बात मुझे यहां की सफाई व्यवस्था लगी जिसका जवाब नहीं है। सड़कें अच्छी खासी चौड़ी हैं, प्रदूषण यहां से दूर ही रहता है। छोटा सा शहर है, एक दिन से कम में भी पैदल घूमा जा सकता है। मुझे यह छुपा हुआ टूरिज्म प्लेस लगा। यहां पर टूरिस्ट की भीड़ और जगहों के मुकाबले कम थी। तेज धूप तो थी पर चुभन वाली नहीं। यहां का मौसम सुबह शाम में ठंडा और दोपहर में सुहावना हो जाता है।
आधा लैंसडाउन गढ़वाल राइफल्स के हिस्से में आता है जिसमें उनकी ट्रेनिंग से लेकर दूसरी गतिविधियां रहती हैं जिसमें आर्मी की मुख्य जगह कोटद्वार से आते हुए लैंसडाउन के शुरू होते ही आ जाती है। जहां टूरिस्ट और कैमरे को दूर ही रखा जाता है। बाकी यहां गढ़वाल राइफल्स की परेड हर रोज होती रहती है जिसे दूर से देखा जा सकता है। गढ़वाली राइफल्स का एक म्यूजियम भी है, जो पर्यटकों के लिए शाम को खुलता है। यह शहर लैंसडाउन छावनी के नाम से भी जाना जाता है जिसकी वजह गढ़वाल सेना का गढ़ होना है। पर्यटकों के लिए लैंसडौन की असली शुरुआत होती है गांधी पार्क चौराहे से जहाँ से रोडवेज़, मैक्स, जीप यातायात साधन कोटद्वार, पौढ़ी और दूसरी जगह के लिए मिलती हैं।
वैसे मैं लैंसडाउन अकेला ही गया था मेरा ट्रेवल पार्टनर वहां से 20 किमी दूर एक पहाड़ी गांव में गढ़वाली गाना शूट कर रहा था। इसलिए मैं और मेरा कैमरा साथ चले आए, शहर में घूमते वक्त 2 अनजान यात्री मिल गयीं जिनसे दोस्ती हो गयी फिर साथ खाया-पिया और साथ ही घूमना हुआ।
लैंसडाउन की सबसे ज्यादा मशहूर जगह है टिप एंड टॉप! शहर शुरू होने से पहले पर्यटकों को बोर्ड पर इसका नाम कई जगह मिला जाता है। हम लोग टिप इन टॉप रास्ते पर पैदल घूमते हुए, पहाड़ी फल काफल खाते हुए, चीड़ के पेड़ों की छांव में 2 किमी की चढ़ाई को आराम से कब पार कर गए पता ही नहीं लगा। यहां के मशहूर स्थानों में खास बात यह है कि सब एक ही रास्ते पर, एक के बाद एक हैं यानी हमारा पैदल आना वसूल हो गया। टिप एंड टॉप जाने के रास्ते में सबसे पहले सेन्ट जॉन चर्च पड़ा जो पहाड़ी की थोड़ी सी ऊंचाई पर बेहद शांत और खूबसूरती से लबरेज है। यहां से शहर का आधा हिस्सा हरियाली के साथ जबरदस्त लगता है। चर्च से आगे चलने पर आर्मी का एक स्थान पड़ता है जहां से निकलने के बाद शहर का मशहूर सैंट मेरी चर्च पड़ता है।
उसके बाद शहर की नामी जगह टिप एंड टॉप आती है। इन सभी ऊंची जगहों में जनवरी-फरवरी के वक्त अच्छी खासी बर्फबारी होती है और उस वक्त के नजारे तो शानदार होते हैं। बाकी आज कल की गर्मियों में भी मौसम खुशनुमा है। टिप इन टॉप से गहरी वादियां, 50 किमी दूर के गांव, सैकड़ों किमी दूर हिमालय की बर्फीली चोटियां अद्भुत लगती हैं। यह नजारा आंखों मे कैद हो जाता है और यही इस स्थान की खास बात है।
यहां खाने पीने के होटल और कुछ दुकानें भी हैं, जहां आराम से बैठकर वादियों का एन्जॉय किया जा सकता है। टिप एंड टॉप से नीचे आकर भुल्ला ताल पड़ता है जो टूरिस्टों का मुख्य पिकनिक पॉइंट है। इस झील के बाहर पार्किंग की सुविधा है, बच्चों के लिए झूले और खाने पीने के सुकूनदायक रेस्टोरेंट हैं। झील को देखने का किराया 20 रुपए है जहां एंट्री करते ही ऐसा लगता है कि फूलों की वादियों में आ गए हैं कदम कदम पर तरह तरह के फूल दिखते हैं जो अलग अलग क्यारियों, गमलों और जमीन में दिखाई दे जाएंगे। अंदर बैठने के लिए सुविधा है तो फ़ोटो खीचने, खिंचाने के लिए शानदार लोकेशन्स भी। ताल में पानी बहुत कम हैं पर उसमें तैरती बत्तखें पर्यटकों का ध्यान खूब खींचती हैं। ताल के ऊपर एक लकड़ी- लोहे से बना पुल है जो ताल की खूबसूरती को दोगुना कर देता है।

ताल से आते ही आर्मी स्कूल, प्रशासनिक अधिकारियों के घर पड़ते हैं जिनके रास्ते चौड़े और हरियाली से भरे हैं। जिस भी घर की ओर देखो वो प्राकृतिक फूलों से सजा धजा मिलता है, जिसकी वजह यहां के लोगों का पेड़-पौधों से अपार प्यार है। रास्ते में आते हुए पहाड़ी फल हिंसोला की कई झाड़ियां पड़ती है जिसको कांटो ने घेर रखा होता है उनसे संघर्ष करके फल हाथ आता है जो खाने में शहतूत जैसा खट्टा -मीठा स्वाद देता है।इस वक्त गुलमोहर के पेड़ खूबसूरती में चरम पर हैं। आम के पेड़ कच्चे आमों से लदे हुए हैं। यहां तरह-तरह के फूल खर पतवार की तरह उग आते है जो हम प्लेन एरिया वालो को रुकने पर मजबूर कर देते हैं।
लैंसडाउन दिल्ली से सिर्फ 6 घण्टे की दूरी पर है। उत्तराखंड में नैनीताल, ऋषिकेश से हटकर कुछ देखने के लिए यह जगह निराश नहीं करती। कुल मिलाकर यह जगह मुझे शांत, स्वच्छ और काफी खुशनुमा लगी।
अपनी इस घुमक्कड़ी के बारे में हमें लिख भेजा है अंकुर सेठी ने। अंकुर पत्रकार हैं और दिल्ली में रहते हैं। जाहिरन तौर पर, घूमना बेहद पसंद है। कहते हैं कि जिंदगी में रोमांच नहीं तो किस काम का जीना। कविताएं-कहानियां पढ़ने का काफी शौक है। अपने धूप के चश्मों से इन्हें बेहद प्यार है। एक पत्रकार और उससे भी पहले एक नागरिक के तौर पर देश-दुनिया के तमाम मुद्दों पर सजग रहते हैं और बेबाकी से अपनी राय रखते हैं।
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