ये लगभग 11 सौ साल पुराना कामरू किला है। सांगला (जिला किन्नौर, हिमाचल प्रदेश) में ही पड़ता है। हालांकि मेन टाउन से लगभग एक किलोमीटर दूर होगा। किले से जुड़े बहुत से मिथक और पौराणिक कथाएं हैं। यह बुशहर राजवंश की मूल सीट थी जो यहां से शासन करती थी। राजधानी को बाद में सराहन और फिर रामपुर में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां अंतिम राजा पदम सिंह ने शासन किया था।

वैसे इस किले में राज्याभिषेक होता था। कहा जाता है कि 121 राजाओं का राज तिलक इसी किले में जो हुआ था। यहां आखिरी बार वीरभद्र सिंह (हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री) के पिता पदम सिंह का राजतिलक हुआ था।

कामरू किले का रास्ता गांव के देवता बद्री विशाल जी के मंदिर से होकर जाता है। इस मंदिर में रखी दो मूर्तियों (देवताओं) में से एक मूर्ति अभी इस किले में लाकर रखी गई है और एक मूर्ति वीरभद्र सिंह लेकर गए हैं क्योंकि उनके यहां कोई कार्यक्रम है।

कामरू वीरभद्र सिंह का पुश्तैनी व पैतृक गांव है और 122वें राजा के तौर पर वह यहां आते हैं। अभी भी राजवंश (वीरभद्र सिंह) में किसी बच्चे का जन्म होता है तो उसे पहली बार इसी मंदिर में लाया जाता है। हालांकि मंदिर (किले) के अंदर किसी को भी जाने की अनुमति नहीं है। लोकल के मुताबिक अभी मंदिर में देवता का निवास है। लेकिन वैसे भी किसी बाहरी का मंदिर में जाना प्रतिबंधित है।

किले में आप ऐसे एंट्री नहीं कर सकते हैं। यहां सीसीटीवी लगे हैं और एक महिला होमगार्ड तैनात है। किले में प्रवेश करने से पूर्व हर शख्स को सर ढंकने के लिए हिमाचली टोपी पहनना और कमर पर गाची बांधना अनिवार्य किया गया है।

यह किला पत्थरों और लकड़ी से बना सात मंजिला भवन है। यहां से सांगला घाटी का अद्भुत नजारा दिखता है। वैसे यहां घूमने आने के लिए सर्दियों का मौसम ज्यादा अच्छा रहता होगा क्योंकि ये पूरी घाटी बर्फ से ढक जाती है। मानूसन में भी यहां से हिमाचल काफी हरा-भरा दिखता है।
ये जरूरी ब्लॉग हमें लिख भेजा है अमित यादव ने। अमित पेशे से पत्रकार हैं। मौका मिलते ही पहाड़ों की शरण में चले जाते हैं। नैसर्गिक सुंदरता की खूबसूरत तस्वीरें उतारना इनका पसंदीदा शगल है। इसके अलावा अमित को अपने गांव-जवार से बेइंतहा प्यार है। वहां की भी झलकियां अमित अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स पर समय-समय दिखाते रहते हैं।
ये भी देखें: