उत्तरी राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में बना भटनेर दुर्ग अपनी भव्यता व मजबूती के लिये पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध था, हालांकि आज यह किला अपनी दुदर्शा पर आंसू बहा रहा है।
भटनेर किले को भारत के सबसे पुराने किलों में से एक माना गया है। यह किला करीब 1700 साल पुराना माना जाता है। इसमें 52 बुर्ज हैं। भटनेर किला उस जमाने का एक मजबूत किला माना जाता था।
भटनेर दुर्ग किले का इतिहास
इतिहास के पन्नों को खंगालने पर पता चलता है कि ‘भूपत भाटी’ के पुत्र ‘अभय राव भाटी’ ने 295 ईस्वी में इस किले का निर्माण करवाया था।यह किला भारतीय इतिहास की कई महत्त्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी भी रहा है।मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच प्रसिद्ध तराइन का युद्ध यहीं पर हुआ था। एक तथ्य यह भी है कि सबसे ज्यादा विदेशी आक्रमण इसी किले पर हुए है।
तैमूर की आत्मकथा में भटनेर दुर्ग का किला
तैमूर ने अपनी आत्मकथा ‘तुजुक-ए-तैमूरी’ में लिखा है, “मैंने इस क़िले के समान हिन्दुस्तान के किसी अन्य किले को सुरक्षित और शक्तिशाली नहीं पाया है। इसके ऊंचे दालान तथा दरबार तक घोडों के जाने के लिए संकरे रास्ते बने हुए हैं। मध्यकाल में भारत पर आक्रमण के दौरान विदेशी शासकों को इसी किले के रास्ते से गुजरना पड़ता था। यह किला विदेशी आक्रमणकारियों के लिए एक मजबूत रुकावट की तरह था।”
भटनेर दुर्ग का किला ढहने के कगार पर
वर्तमान में यह किला बहुत ही जर्जर अवस्था में है। किले के मुख्य दरवाज़े को बैसाखियों के सहारे खड़ा रखा गया है। जल संचय के लिए बनाए गये जलकुण्ड मिट्टी से भर चुके है तथा दुर्ग परिसर में झाड़िया उग आई हैं। दुर्ग का बाहरी परकोटा भी ढ़हने के कगार पर है।
(यह ब्लॉग अंकित कुंवर ने संपादित किया है। अंकित चलत मुसाफ़िर के साथ इंटर्नशिप कर रहे हैं।)
ये जानकारी हमें लिख भेजी है हितेश शर्मा ने। हितेश ट्रैवेल कंपनी ‘घुमक्कड़ी एडवेंचर्स’ के सर्वेसर्वा हैं। अपनी अनोखी घुमक्कड़ी के लिए प्रसिद्ध हितेश आम लोगों के लिए भी नायाब ट्रिप करवाते हैं। हितेश की मोटरसाइकिल और उनके पैर सिर्फ विचरना जानते हैं। घूमने के साथ ही हितेश तस्वीरें खींचते हैं और अपनी यात्राओं के बारे में लिखते भी हैं।
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